आपके पड़ोस में रहने वाला समलैंगिक युवक?

कभी सोचा है कि ज्यादातर भारतीय पुरूष समलैंगिक होने का ठप्पा लगने से भयभीत क्यों रहते हैं?
क्या उनके असल में समलैंगिक लोगों की पहल का डर होता है या फिर इस ठप्पे के चलते महिलाएं ना मिल पाने का?
मुझे गलत मत समझिए। मैं आपके पड़ोस में रहने वाला homophobiaनहीं हूं। असल में मेरी इस छाप का जिम्मेदार है मेरी शेव की हुई छाती और मेरा समलैंगिक गौरव परेड में शामिल होना। जी हॉं मैं महसूस कर सकता हूं कि आप क्या सोच रहे हैं मेरे बारे में।
गुप्त समलैंगिक
अभी भी मुझे बोरियत होती है जब लोग मुझसे मेरी लैंगिकता से जुड़े सवाल पूछते हैं। मेरे दोस्त मुझे कहते कि मुझे इस बात से फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
मेरा मनना है कि इस प्रकार के लोग खुद छुपे हुए समलैंगिक होते हैं। मैं नहीं जानता वो मेरे बारे में क्या सोचते हैं। मुझे पता है कि मेरे माता पिता को मैं बाताउंगा तो वो इस बात से जरा भी विचलित नहीं होंगे। वैसे मेरी मा मुझ से मेरे गौरव परेड में शामिल होने के बारे में पूछ चुकी हैं।
हाथों में हाथ
करीब 17 मिनट के गहन विचार के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि असल में मुझे इस बात से सचमुच फर्क पड़ता है कि लोग मेरे बारे में क्या सोचतते हैं।
पांच साल पहले लड़कियों के समूह में 2 लड़कों को हाथ पकड़े देखना कोई अजीब दृश्य नहीं माना जाता था। लेकिन अचानक आज मैं और मेरा गहरा दोस्त यदि ऐसा करें तो उसे दोस्ती नहीं बल्कि करण जोहर की फिल्म 'दोस्ताना' जैसा माना जायेगा। इस बदलाव को मैं दुखद ही मानता हूं।
दर्जे
और पिछले कुछ सालों में हमने कुछ अजीब से दर्जे निर्धारित कर दिये हैं।
छाती पर ढ़ेर सारे बाल वाले अजीब कपड़े पहने हुए मर्द और सलाद खाने वाले योग करने वाले समलैंगिक पुरूष, और इनके बीच पुरूष, और इसके बीच में कहीं अपनी जगह बनाते मेट्रोसेक्सुयल पुरूष। और फिर कुछ टाइट जींस पहनने वाले लेकिन डांस ना करने वाले मेरे जैसे युवक।
दुखद बात ये है कि हम सभी इन दर्जों में विश्वास कर लेते हैं। तो अब मैं ज़ारा के शोरूम में घुसने से पहले दो बार सोचता हूं, लेडी गागा की प्रशंसा करने से पहले तीन बार सोचता हूं और मैंने अपने लाल रंग के पैजामे को पहनना बंद कर दिया है, क्योंकि आप सभी लोग ना जाने मुझे किस श्रेणी में डाल दें।
लेकिन आखिर मुझे किसी भी श्रेणी में क्यों डाला जाये? आखिर क्यों पुरूषों के बारे में उसकी टाई, पतलून और उनके नाचने के आधार पर राय बना ली जाती है।
ठप्पा
मुझे लगता है कि इसे यहां रूकना चाहिए। मैं एक आजाद ख्यालों वाला संवेदनशील पुरूष हूं, लेकिन साथ ही असुरक्षित महसूस करता हूं।
लेकिन और नहीं। नये साल पर मैंने तय किया है कि मैं विषम लैंगिक दिखने का प्रयास करना अब बंद करूंगा। मैं सिर में बन कर रहुंगा। यदि किसी को उस से कोई फर्क पड़ता है तो वो उसकी तकलीफ है।
लाल पैजामा, बो टाई, गुलाबी कमीज और शेव की हुई छाती, क्या हम एक बार पुर्नविचार कर सकते है कि लड़के को सिर्फ लड़का रहने दें और पुरूषों को सिर्फ पुरूष बिना उन पर कोई ठप्पा लगाये? मैं अब किसी के बारे में ऐसी कोई राय नहीं बनाउंगा— और आप
No comments:
Post a Comment